Sunday, April 3, 2016

शिवपूजाकी विशेषताएं


१. शिवपूजाकी विशेषताएं   हालाहल प्राशन कर विश्वको विनाशसे बचानेवाले, देव व दानव दानोंद्वारा उपास्य, सहज प्रसन्न होनेवाले, भूतोंके स्वामी, नृत्य व नाट्य कलाओंके प्रवर्तक, योगमार्गके प्रणेता इत्यादि विशेषताओंसे युक्त महादेव अर्थात् भगवान शिव जगत्पिताके गौरान्विवित किए जाते हैं । वेद, शास्त्र, पुराण तथा तंत्रग्रंथोंमें शिवजीके गौरवगान, लीला व उपदेशका वर्णन है । फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशीको महाशिवरात्रि कहते हैं । इस व्रतके प्रधान देवता हैं, शिव । इस दिन संपूर्ण भारतवर्षमें शिवजीकी उपासना की जाती है । अधिकांश लोगोंको शिवजीसे संबंधित जो थोडी-बहुत जानकारी है, वह बचपनमें पढी या सुनी गई कहानियोंद्वारा होती है । किसी भी देवता व उनके पूजनसे संबंधित अधिक जानकारी प्राप्त होनेपर विश्वास बढता है । शिवभक्तोंके लिए शिवजीसे संबंधित जानकारी यहां दे रहे हैं । यदि देवतासे संबंधित जानकारीके साथ-साथ अध्यात्मशास्त्रकी जानकारी भी हो, तो साधना अधिक योग्य ढंगसे हो सकती है । इसके लिए जिज्ञासु सनातन संस्था-निर्मित अध्यात्मशास्त्र विषयक ग्रंथों व सत्संगोंका लाभ ले सकते हैं । २. महाशिवरात्रि व्रतकी पद्धति व विधि   फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशीको महाशिवरात्रिका व्रत रखा जाता है । इस तिथिपर एकभुक्त रहें । चतुर्दशीके दिन प्रात:काल व्रतका संकल्प करें । सायंकाल शास्त्रोक्त स्नान करें । भस्म और रुद्राक्ष धारण करें । प्रदोषकालमें शिवजीके मंदिर जाएं । शिवजीका ध्यान करें । तदुपरांत षोडशोपचार पूजा करें । भवभवानीप्रीत्यर्थ (यहां भव यानी शिव) तर्पण करें । नाममंत्र जपते हुए शिवजीको एक सौ आठ कमल अथवा बिल्वपत्र अर्पण करें । पुष्पांजलि अर्पण कर, अर्घ्य दें । पूजासमर्पण, स्तोत्रपाठ तथा मूलमंत्रका जाप हो जाए, तो शिवजीके मस्तकपर चढाए गए फूल लेकर अपने मस्तकपर रखें और शिवजीसे क्षमायाचना करें । चतुर्दशीपर रात्रिके चारों प्रहरोंमें चार पूजा करनेका विधान है, जिसे यामपूजा कहा जाता है । प्रत्येक यामपूजामें देवताको अभ्यंगस्नान कराएं, अनुलेपन करें, साथ ही धतूरा, आम तथा बिल्वपत्र अर्पण करें । चावलके आटेके २६ दीप जलाकर देवताकी आरती उतारें । पूजाके अंतमें १०८ दीप दान करें । प्रत्येक पूजाके मंत्र भिन्न होते हैं; मंत्रों सहित अर्घ्य दें । नृत्य, गीत, कथाश्रवण आदि करते हुए जागरण करें । प्रात:काल स्नान कर, पुन: शिवपूजा करें । पारण अर्थात् व्रतकी समाप्तिके लिए ब्राह्मणभोजन कराएं । (पारण चतुर्दशी समाप्त होनेसे पूर्व ही करना योग्य होता है ।) ब्राह्मणोंके आशीर्वाद प्राप्त कर व्रत संपन्न होता है । बारह, चौदह अथवा चौबीस वर्ष जब व्रत हो जाए, तो उद्यापन करें । ३. महाशिवरात्रिपर शिवजीका नामजप करनेका महत्त्व   अनेक संतोंने कहा है, कलियुगमें नामजप ही सर्वोत्तम साधना है । नामजप हम उठते-बैठते, जागते-सोते, आते-जाते भी कर सकते हैं । विश्वमें बढे हुए तमोगुणसे रक्षा होने हेतु तथा शिवरात्रिपर वातावरणमें प्रक्षेपित शिवतत्त्व आकर्षित करनेके लिए महाशिवरात्रिपर शिवजीका `ॐ नम: शिवाय’ यह नामजप अधिकाधिक करें । ४. शिवपूजाकी विशेषताएं   पूजाके लिए कहां बैठें ?: आम तौरपर शिवमंदिरमें पूजा एवं साधना करनेवाले श्रद्धालुगण शिवजीकी तरंगोंको सीधे अपने शरीरपर नहीं लेते; क्योंकि इससे कष्ट होता है । शिवजीके मंदिरमें अरघाके स्रोतके ठीक सामने न बैठकर, एक ओर बैठते हैं; क्योंकि शिवकी तरंगें सामनेकी ओरसे न निकलकर, अरघाके स्रोतसे बाहर निकलती हैं ।   शिवपिंडीको ठंडे जल, दूध अथवा पंचामृतसे स्नान करवाते हैं ।   शिवपूजामें हलदी-कुमकुमका प्रयोग नहीं करते; भस्म तथा श्वेत अक्षतका प्रयोग करते हैं ।   पिंडीके दर्शनीय भागपर भस्मकी तीन समांतर धारियां बनाते हैं या फिर समांतर धारियां खींचकर उनके मध्य एक वर्तुल बनाते हैं । उसे शिवाक्ष अथवा योगाक्ष भी कहते हैं । शिवाक्षपर चावल, क्वचित गेहूं एवं श्वेत पुष्प चढाते हैं ।   शिवपिंडीकी पूर्ण प्रदक्षिणा न कर, अर्धचंद्राकृति प्रदक्षिणा करते हैं । अरघेके स्रोतको लांघते नहीं, क्योंकि वहां शक्तिस्रोत होता है । उसे लांघते समय पैर फैलते हैं, जिससे वीर्यनिर्मिति व पांच अंतस्थ वायुओंपर विपरीत परिणाम होता है ।  रुद्राक्ष: भगवान शिव निरंतर समाधिमें होते हैं, इस कारण उनका कार्य सदैव सूक्ष्मसे ही जारी रहता है । यह कार्य अधिक सुव्यवस्थित हो, इसके लिए भगवान शिवने भी रुद्राक्षकी माला शरीरपर धारण की है । इसी कारण शिव-उपासनामें रुद्राक्षका असाधारण महत्त्व है ।’ किसी भी देवताका जप करने हेतु रुद्राक्षमालाका प्रयोग किया जा सकता है । रुद्राक्षमालाको गलेमें या अन्यत्र धारण कर किया गया जप, बिना रुद्राक्षमाला धारण किए गए जपसे हजार गुना लाभदायक होता है । इसी प्रकार अन्य किसी मालासे जप करनेकी तुलनामें रुद्राक्षकी मालासे जप करनेपर दस हजार गुना अधिक लाभ होता है ।  ५. असली रुद्राक्ष कैसे पहचानें ?  असली रुद्राक्ष नकली रुद्राक्ष १. आकार मछली समान चपटा गोल २. रंग (आकाशकी लालिमा समान) पक्‍का पानीमें धुल जाता है ३. पानीमें डालनेपर सीधे नीचे जाता है तैरता है अथवा हिलते- डुलते नीचे जाता है ४. आर-पार छिद्र होता है सुईसे करना पडता है ५. तांबेके बर्तनमें अथवा पानीमें      डालनेपर गोल-गोल घूमना होता है नहीं ६. कुछ समय बाद कीट लगना नहीं लगते लगते हैं ७. मूल्‍य (सन्‌ १९९७ में) रु. ४,००० से ४०,००० रु. २० से २०० ८. कौनसी तरंगें ग्रहण करता है? सम (सत्त्‍व)       –

१. शिवपूजाकी विशेषताएं



हालाहल प्राशन कर विश्वको विनाशसे बचानेवाले, देव व दानव दानोंद्वारा उपास्य, सहज प्रसन्न होनेवाले, भूतोंके स्वामी, नृत्य व नाट्य कलाओंके प्रवर्तक, योगमार्गके प्रणेता इत्यादि विशेषताओंसे युक्त महादेव अर्थात् भगवान शिव जगत्पिताके गौरान्विवित किए जाते हैं । वेद, शास्त्र, पुराण तथा तंत्रग्रंथोंमें शिवजीके गौरवगान, लीला व उपदेशका वर्णन है । फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशीको महाशिवरात्रि कहते हैं । इस व्रतके प्रधान देवता हैं, शिव । इस दिन संपूर्ण भारतवर्षमें शिवजीकी उपासना की जाती है । अधिकांश लोगोंको शिवजीसे संबंधित जो थोडी-बहुत जानकारी है, वह बचपनमें पढी या सुनी गई कहानियोंद्वारा होती है । किसी भी देवता व उनके पूजनसे संबंधित अधिक जानकारी प्राप्त होनेपर विश्वास बढता है । शिवभक्तोंके लिए शिवजीसे संबंधित जानकारी यहां दे रहे हैं । यदि देवतासे संबंधित जानकारीके साथ-साथ अध्यात्मशास्त्रकी जानकारी भी हो, तो साधना अधिक योग्य ढंगसे हो सकती है । इसके लिए जिज्ञासु सनातन संस्था-निर्मित अध्यात्मशास्त्र विषयक ग्रंथों व सत्संगोंका लाभ ले सकते हैं ।

२. महाशिवरात्रि व्रतकी पद्धति व विधि



फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशीको महाशिवरात्रिका व्रत रखा जाता है । इस तिथिपर एकभुक्त रहें । चतुर्दशीके दिन प्रात:काल व्रतका संकल्प करें । सायंकाल शास्त्रोक्त स्नान करें । भस्म और रुद्राक्ष धारण करें । प्रदोषकालमें शिवजीके मंदिर जाएं । शिवजीका ध्यान करें । तदुपरांत षोडशोपचार पूजा करें । भवभवानीप्रीत्यर्थ (यहां भव यानी शिव) तर्पण करें । नाममंत्र जपते हुए शिवजीको एक सौ आठ कमल अथवा बिल्वपत्र अर्पण करें । पुष्पांजलि अर्पण कर, अर्घ्य दें । पूजासमर्पण, स्तोत्रपाठ तथा मूलमंत्रका जाप हो जाए, तो शिवजीके मस्तकपर चढाए गए फूल लेकर अपने मस्तकपर रखें और शिवजीसे क्षमायाचना करें । चतुर्दशीपर रात्रिके चारों प्रहरोंमें चार पूजा करनेका विधान है, जिसे यामपूजा कहा जाता है । प्रत्येक यामपूजामें देवताको अभ्यंगस्नान कराएं, अनुलेपन करें, साथ ही धतूरा, आम तथा बिल्वपत्र अर्पण करें । चावलके आटेके २६ दीप जलाकर देवताकी आरती उतारें । पूजाके अंतमें १०८ दीप दान करें । प्रत्येक पूजाके मंत्र भिन्न होते हैं; मंत्रों सहित अर्घ्य दें । नृत्य, गीत, कथाश्रवण आदि करते हुए जागरण करें । प्रात:काल स्नान कर, पुन: शिवपूजा करें । पारण अर्थात् व्रतकी समाप्तिके लिए ब्राह्मणभोजन कराएं । (पारण चतुर्दशी समाप्त होनेसे पूर्व ही करना योग्य होता है ।) ब्राह्मणोंके आशीर्वाद प्राप्त कर व्रत संपन्न होता है । बारह, चौदह अथवा चौबीस वर्ष जब व्रत हो जाए, तो उद्यापन करें ।

३. महाशिवरात्रिपर शिवजीका नामजप करनेका महत्त्व



अनेक संतोंने कहा है, कलियुगमें नामजप ही सर्वोत्तम साधना है । नामजप हम उठते-बैठते, जागते-सोते, आते-जाते भी कर सकते हैं । विश्वमें बढे हुए तमोगुणसे रक्षा होने हेतु तथा शिवरात्रिपर वातावरणमें प्रक्षेपित शिवतत्त्व आकर्षित करनेके लिए महाशिवरात्रिपर शिवजीका `ॐ नम: शिवाय’ यह नामजप अधिकाधिक करें ।

४. शिवपूजाकी विशेषताएं



पूजाके लिए कहां बैठें ?: आम तौरपर शिवमंदिरमें पूजा एवं साधना करनेवाले श्रद्धालुगण शिवजीकी तरंगोंको सीधे अपने शरीरपर नहीं लेते; क्योंकि इससे कष्ट होता है । शिवजीके मंदिरमें अरघाके स्रोतके ठीक सामने न बैठकर, एक ओर बैठते हैं; क्योंकि शिवकी तरंगें सामनेकी ओरसे न निकलकर, अरघाके स्रोतसे बाहर निकलती हैं ।


शिवपिंडीको ठंडे जल, दूध अथवा पंचामृतसे स्नान करवाते हैं ।


शिवपूजामें हलदी-कुमकुमका प्रयोग नहीं करते; भस्म तथा श्वेत अक्षतका प्रयोग करते हैं ।


पिंडीके दर्शनीय भागपर भस्मकी तीन समांतर धारियां बनाते हैं या फिर समांतर धारियां खींचकर उनके मध्य एक वर्तुल बनाते हैं । उसे शिवाक्ष अथवा योगाक्ष भी कहते हैं । शिवाक्षपर चावल, क्वचित गेहूं एवं श्वेत पुष्प चढाते हैं ।


शिवपिंडीकी पूर्ण प्रदक्षिणा न कर, अर्धचंद्राकृति प्रदक्षिणा करते हैं । अरघेके स्रोतको लांघते नहीं, क्योंकि वहां शक्तिस्रोत होता है । उसे लांघते समय पैर फैलते हैं, जिससे वीर्यनिर्मिति व पांच अंतस्थ वायुओंपर विपरीत परिणाम होता है ।

रुद्राक्ष: भगवान शिव निरंतर समाधिमें होते हैं, इस कारण उनका कार्य सदैव सूक्ष्मसे ही जारी रहता है । यह कार्य अधिक सुव्यवस्थित हो, इसके लिए भगवान शिवने भी रुद्राक्षकी माला शरीरपर धारण की है । इसी कारण शिव-उपासनामें रुद्राक्षका असाधारण महत्त्व है ।’ किसी भी देवताका जप करने हेतु रुद्राक्षमालाका प्रयोग किया जा सकता है । रुद्राक्षमालाको गलेमें या अन्यत्र धारण कर किया गया जप, बिना रुद्राक्षमाला धारण किए गए जपसे हजार गुना लाभदायक होता है । इसी प्रकार अन्य किसी मालासे जप करनेकी तुलनामें रुद्राक्षकी मालासे जप करनेपर दस हजार गुना अधिक लाभ होता है ।

५. असली रुद्राक्ष कैसे पहचानें ?

असली रुद्राक्षनकली रुद्राक्ष
१. आकारमछली समान चपटागोल
२. रंग (आकाशकी लालिमा समान)पक्‍कापानीमें धुल जाता है
३. पानीमें डालनेपरसीधे नीचे जाता हैतैरता है अथवा हिलते-
डुलते नीचे जाता है
४. आर-पार छिद्र
होता हैसुईसे करना पडता है
५. तांबेके बर्तनमें अथवा पानीमें
     डालनेपर गोल-गोल घूमना
होता हैनहीं
६. कुछ समय बाद कीट लगनानहीं लगतेलगते हैं
७. मूल्‍य (सन्‌ १९९७ में)रु. ४,००० से
४०,०००
रु. २० से २००
८. कौनसी तरंगें ग्रहण करता है?सम (सत्त्‍व)      –
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