Sunday, May 3, 2015

कुंडली के द्वादश भावों से विचारणीय बातें


कुंडली के द्वादश भावों से विचारणीय बातें

प्रथम भाव - प्रथम भाव से जातक के शरीर, रंग, रूप, जाति, आत्मबल, स्वाभाव, आकृति, आयु, सुख-दुःख, विवेक और चरित्र आदि का विचार किया जाता है। 
द्वितीय भाव - द्वितीय भाव से जातक के  धन, कोष, कुल, मित्र, आँख, कान, नाक, स्वर, सौंदर्य, आदतें, संचित पूंजी, क्रय-विक्रय, वाणी, प्रेम आदि का ज्ञान किया जाता है। 
तृतीय भाव - तृतीय भाव से जातक के पराक्रम, छोटे भाई-बहन, नौकर-चाकर, शौर्य-धैर्य, दमा-खाँसी, योगाभ्यास, फेफड़े और श्वसन-सम्बन्धी बातों का विचार किया जाता है। 
चतुर्थ भाव - चतुर्थ भाव से जातक के मातृसुख, घर, पशु और वाहन का सुख, सम्पत्ति, अंतःकरण, बाग़-बग़ीचा, जमीन, छल-कपट, निधि, पेट के रोग, उदारता तथा गोद जाने आदि जाने का  विचार किया जाता है।
पंचम भाव - पंचम भाव से विद्या-बुद्धि, प्रबन्ध, संतान, नीति, विनय, देशभक्ति, ख्याति, पाचन-शक्ति, नौकरी छोड़ना, अनायास धन प्राप्ति (लॉटरी , सट्टा इत्यादि) गर्भाशय, मुत्रपिण्ड एवं बस्ति का विचार किया जाता है।
षष्ठम भाव - षष्ठम भाव से जातक के मामा, शत्रु, रोग, भय, झगड़े-मुक़दमे, क़र्ज़ , दुःख, व्रण, गुदास्थान आदि का विचार किया जाता है।
सप्तम भाव - सप्तम भाव से जातक की स्त्री, स्त्री-सुख, दैनिक जीविका, भोग-विलास, जननेन्द्रिय रोग, व्यापार-विवाह, स्त्री का रूप, रंग, शील, चरित्र, बवासीर, तलाक़ आदि का विचार किया जाता है।
अष्टम भाव - अष्टम भाव से जातक की व्याधि, आयु, जीवन-मरण, प्रवास, पुरातत्त्वान्वेषण, पूर्वसंचित द्रव्य, गड़ा धन, पूर्व जन्म, अकाल-मृत्यु, ऋणग्रस्तता, लिंग-योनि, अंडकोष आदि के रोगो का विचार किया जाता है।
नवम भाव - नवम भाव से जातक के भाग्योदय, शील, विद्या, तप, धर्म, धर्म-परिवर्तन, तीर्थ-यात्रा, गुरु, ईश्वर-प्राप्ति, पिता का सुख, दान-पुण्य, मानसिक वृत्ति आदि का ज्ञान किया जाता है।
दशम भाव - दशम भाव से जातक के राज्य, मान, नौकरी, पिता का सुख, प्रभुता, व्यापार, अधिकार, ऐश्वर्या-भोग, कीर्ति-लाभ, नेतृत्व, विदेश यात्रा, आत्मविश्वास आदि का ज्ञान किया जाता है।
एकादश भाव - एकादश भाव से जातक की आय, संपन्नता, वैभव, मोटर, पालिक, संपत्ति, बड़े भाई-बहनों की संख्या, गुप्त धन, लाभ-हानि, स्वतंत्र चिंतन, नौकर आदि के सुख का विचार किया जाता है। 
द्वादश भाव - द्वादश भाव से जातक के व्यय, व्यय का माध्यम, अर्थ-हानि, शत्रु का विरोध, नेत्र-पीड़ा, दंड, व्यसन, शय्या-सुख, अतिरिक्त एवं आकस्मिक व्यय, विपत्तियां, मोक्ष यानि मरने के बाद प्राणी की गति आदि का ज्ञान किया जाता है।
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