रतिप्रिया यक्षिणी
रतिप्रिया यक्षिणी |
ईश्वर उवाच -
अथाग्रे कथियिष्यामि यक्षिण्यादि प्रसाधनम् ।यस्य सिद्धौ नराणां हि सर्वे सन्ति मनोरथाः॥
श्री शिवजी बोले –हे रावण ! अब मैं तुमसे यक्षिणी साधना का कथन करता हूं , जिसकी सिद्धि कर लेने से साधक के सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं ।
मेरे प्रिय साधकजनों !!!! जब भगवान शंकर ने यह कह ही दिया है कि यक्षिणी साधना से जीवन के सभी मनोरथ सिद्ध हो सकते हैं तो हम क्यों अपना जीवन न्यूनताओं में जीते जा रहें हैं !!!! आखिर कौन से माता-पिता हैं जो यह चाहते हैं कि उनकी संतान धन के अभाव में अपना जीवन जीए !! हर पल अपनी इच्छाओं का त्याग कर सिर्फ अपनी मामूली सी जरूरतें पूरी करने में ही सम्पूर्ण जीवन लगा दे !!?? भगवान शिव नें तंत्र का एसा ज्ञान दिया है जिसके माध्यम से आप जीवन में आ रही समस्त समस्याओं को मूल सहित नष्ट कर सकते हैं और एसा वैभवशाली जीवन जी सकते हैं जैसा के धनाध्यक्ष कुबेर का है , देवराज इन्द्र का है !!!! और यह सब संभव हो सकता है यदि आप सही विधि विधान से और अपने गुरुदेव से यक्षिणी साधना के गुप्त सूत्र प्राप्त करने के पश्चात ही साधना करें क्योंकि बिना गुप्त सूत्रों के यक्षिणी का प्रत्यक्षीकरण तो दूर की बात है आप तो उसकी साधना का प्रथम चरण यानि कि उसकी खुशबू के लिये ही तरस जाएँगे !!!! और यह बात भी सत्य है कि एक ही साधना कई चरणों में सम्पन्न होती है । जिसमें प्रथम चरण में उस यक्षिणी के बदन की सुगंध आती है । दूसरे चरण में घुँघरूओं की झंकार सुनाई देती है । तीसरे चरण में यक्षिणी का प्रत्यक्षीकरण होता है और फिर चौथे चरण में वो देवी पूर्णतः सिद्ध हो जाती है । यक्षिणीआँ और यक्ष हमेशा कुबेर की सेवा में लीन रहते हैं। अब कोषाध्यक्ष की सेवा में रहने वाले धन से वंचित रह जाएँ !! एसा हो ही नहीँ सकता । कुबेर भगवान की ही यक्षिणीओं में से एक का नाम है !!!!!"रतिप्रिया यक्षिणी"!!!! इसे "धनदा यक्षिणी" के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह अपने साधक को धन से मालामाल कर देती है । इस यक्षिणी का बदन स्वर्ण के समान आभा युक्त तथा गुलाब पुष्प की तरह कोमल होता है। उन्नत उरोज़ और नितंभ इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देते हैं । इसे देखते ही पहला शब्द मुख से निकलता है :- हे भगवान क्या सच में तेरी कायनात इतनी खूबसूरत थी या अब लगने लगी है.............!!!!! कुछ एसे ही विचार आपके मन में भी आएँगे जब आप इसे पहली बार देखोगे !!! यक्षिणीआँ अपने साधकों पे अपना सर्वस्व लूटा देतीं हैं और जो भी साधक चाहता है तत्काल उसके सामने उपस्थित कर देती हैं । यक्षिणीओं की साधना में अत्यंत ध्यान देने की जो बात है वो यह है कि कई बार साधना के दौरान यक्षिणी अत्यंत क्रोधित अवस्था में दर्शन देती है एसे में यदि उसे शांत करने की मुद्रा का ज्ञान ना हो तो आपकी मृत्यु निश्चित है इसलिए सारे ग्रंथ गुरु से ही ज्ञान प्राप्त करने को कहते हैं क्योंकि एक गुरु ही एसी मुद्राओं का ज्ञान दे सकता है जिनके प्रभाव से यक्षिणीओं को आना ही पड़ता है ॥ मेरा इस पोस्ट को डालने का मंतव्य यही था कि यक्षिणीओं के बारे में जो भ्रांतियाँ आप सब साधकों के मन में है वो दूर हो सकें और आपका समय तथा धन दोनों की ही बचत हो ॥
जय महाकाल
Mujhe ye Vidhi karani hai parqntu Mai guru ki talash me hu pliz mujhe Marg dikhaiye
ReplyDeleteAs per scripture krinkini tantra . Ratpriya yakshini ki sadhna khud kuber ne ki thi toh wo uski sevika kaise ho sakti hai. Yakshini bhagwan shiv ki seva krti hai na ki kuber ki pls correct it.
ReplyDeleteJakass bhai
ReplyDeleteतू ही बता दें ओ ज्ञान
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