जाने मृत्यु औऱ आत्मा से जुड़े गहरे ओर गुप्त रहस्य जो स्वयं यमराज ने बताये थे नचिकेता को?
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हमारे हिन्दू धर्म में विश्वास है की किसी भी मनुष्य की मृत्यु के पश्चात उस मनुष्य की आत्मा को यमदूतों दवारा यामलोग ले जाया जाता है जहाँ उस आत्मा को मृत्यु के देव व सूर्य पुत्र यमराज का सामना करना पड़ता है, तथा उसके अच्छे या बुरे कर्मो के हिसाब से वह स्वर्ग अथवा नरक पाता है।
पुराणिक कथाओ में दो ऐसी कथाएँ मिलती है जिसमे बताया गया है की स्वयं मृत्युदेव यमराज को भी साधारण मनुष्य के आगे मजबूर होना पड़ा था।पहली कथा के अनुसार यमराज को पतिव्रता सवित्री के जिद के आगे उसके मृत पति सत्यवान को जीवित करना पड़ा था।तथा दूसरी कथा एक बालक से संबंधित है, जिसमे बालक नचिकेता के हठ के आगे यमराज ने उसे मृत्यु से संबंधित गूढ़ रहस्य बताये थे।
आइये जानते है आखिर क्यों बालक नचिकेता को यमराज से मृत्यु के रहस्यों को जानने की जरूरत पड़ी और क्या थे ये रहस्य ?
नचिकेता वाजश्रवस ऋषि के पुत्र थे, एक बार वाजश्रवस ऋषि ने अपने आश्रम में विश्वजीत नामक यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के सम्पन्न होने के पश्चात अब दान-दक्षिणा की बारी आई।
वाजश्रवस ऋषि ने यज्ञ में सम्लित ब्राह्मणो को ऐसी गाये दान में दी जो पूरी तरह से कमजोर और बूढी हो चुकी थी।नचिकेता धर्मिक प्रवर्ति के और बुद्धिमान थे, वह समझ गए थे की उनके पिता ने मोह के कारण स्वस्थ एवं जवान गायों के स्थान पर कमजोर एवं बीमार गाये ब्राह्मणो को दान दी।
नचिकेता अपने पिता के समाने गए और उनसे यह सवाल किया की पिता जी आप मुझे दान में किसे देंगे। वाजश्रवस ऋषि ने नचिकेता को डाट झपट कर दूर करना चाहा परन्तु नचिकेता ने अपना सवाल पूछना जारी रखा तब वाजश्रवस ऋषि ने क्रोधित होकर नचिकेता से कहा की में तुम्हे यमराज को दान करता हूं।
नचिकेता बहुत आज्ञाकारी पुत्र थे अतः वह अपने पिता की इच्छा पूरी करने यमलोक गए तथा यमलोक के द्वार पर तीन दिन तक बगैर कुछ खाये पीये यमराज की प्रतीक्षा करते रहे।
तब बालक नचिकेता की भूखे प्यासे यमराज के द्वार में खड़े होने की खबर सुन स्वयं यमराज ने नचिकेता को दर्शन दिया तथा नचिकेता के प्रश्न पर यमराज ने उन्हें मृत्यु से जुड़े जो रहस्य बताए वह इस प्रकार है।
किस तरह शरीर से होता है ब्रह्म का ज्ञान व दर्शन?
मनुष्य शरीर दो आंखं, दो कान, दो नाक के छिद्र, एक मुंह, ब्रह्मरन्ध्र, नाभि, गुदा और शिश्न के रूप में 11 दरवाजों वाले नगर की तरह है, जो ब्रह्म की नगरी ही है। वे मनुष्य के हृदय में रहते हैं। इस रहस्य को समझकर जो मनुष्य ध्यान और चिंतन करता है, उसे किसी प्रकार का दुख नहीं होता है. ऐसा ध्यान और चिंतन करने वाले लोग मृत्यु के बाद जन्म-मृत्यु के बंधन से भी मुक्त हो जाता है।
क्या आत्मा मरती है या मारती है ?
जो कोई भी आत्मा को मरने या मारने वाला समझता है वास्तविकता में वह भटक हुआ होता है उसे सत्य का ज्ञान नहीं होता।क्योकि न तो आत्मा मरती है और नहीं आत्मा किसी को मार सकती है।
क्यों मनुष्य के हृदय में परमात्मा का वास माना जाता है ?
मनुष्य का हृदय ब्रह्मा को पाने का स्थान कहलाता है तथा मनुष्य ही परमात्मा को पाने का अधिकारी माना गया है। मनुष्य का हृदय अंगूठे के माप का होता है ,शास्त्रों में ब्रह्म को अंगूठे के आकार का माना गया है। और अपने में परमात्मा का वास मानने वाला व्यक्ति दूसरे के हृदय में भी ब्रह्म को विराजमान मानता है। इसलिए दूसरों की बुराई व घृणा से दूर रहना चाहिए।
आत्मा का स्वरूप कैसा होता है ?
शरीर के नाश होने के साथ अात्मा के जीवात्मा का नाश नहीं होता क्योकि आत्मा अजर अमर है।आत्मा का भोग-विलास, नाशवान, अनित्य और जड़ शरीर से इसका कोई लेना-देना नहीं है। यह अनन्त, अनादि और दोष रहित है। इसका कोई कारण है, न कोई कार्य यानी इसका न जन्म होता है, न मरती है।
यदि कोई व्यक्ति आत्मा- परमात्मा का रहस्य नहीं जनता तो उसे किस प्रकार के फल भोगने पड़ते है ?
जिस तरह बारिश का पानी होता तो एक ही है परन्तु पहाड़ों पर गिरने से वह एक जगह नहीं रुकता तथा नीचे की ओर बहता रहता है।
इस प्रकार वह कई प्रकार के रंग रूप, गंध आदि से होकर गुजरता है. ठीक उसी प्रकार परमात्मा से जन्म लेने वाले मनुष्य, प्राणी, देव, सुर, असुर होते तो परमात्मा का ही अस्तित्व, परन्तु अपने आस-पास के वातावरण आदि से घुल-मिल कर वह उसी वातावरण के आदि हो जाते है। बारिश की बूंदों की तरह सुर असुर और दुष्ट प्रवर्ति वाले मनुष्यो को अनेको योनियों में भटकना पड़ता है।
आत्मा निकलने के बाद क्या शरीर में शेष रह जाता है ?
मनुष्य के शरीर से आत्मा निकल जाने के साथ ही साथ उसका इंद्रिय ज्ञान और प्राण दोनों ही निकल जाते है. मनुष्य शरीर में क्या बाकी रह जाता है यह तो दिखाई नहीं देता परन्तु वह परब्रह्म उस शरीर में शेष रह जाता है. जो हर चेतन और प्राणी में विदयमान है।
कैसा है ब्रह्म का स्वरूप और वे कहां और कैसे प्रकट होते हैं ?
ब्रह्म प्राकृतिक गुणों से एकदम अलग हैं, वे स्वयं प्रकट होने वाले देवता हैं. इनका नाम वसु है. वे ही मेहमान बनकर हमारे घरों में आते हैं. यज्ञ में पवित्र अग्रि और उसमें आहुति देने वाले भी वसु देवता ही होते हैं. इसी तरह सभी मनुष्यों, श्रेष्ठ देवताओं, पितरों, आकाश और सत्य में स्थित होते हैं. जल में मछली हो या शंख, पृथ्वी पर पेड़-पौधे, अंकुर, अनाज, औषधि हो या पर्वतों में नदी, झरने और यज्ञ फल के तौर पर भी ब्रह्म ही प्रकट होते हैं. इस प्रकार ब्रह्म प्रत्यक्ष देव हैं।
मृत्यु के बाद आत्मा को क्यों और कौन सी योनियां मिलती हैं?
यमदेव के अनुसार अच्छे और बुरे कामों और शास्त्र, गुरु, संगति, शिक्षा और व्यापार के माध्यम से देखी-सुनी बातों के आधार पर पाप-पुण्य होते हैं. इनके आधार पर ही आत्मा मनुष्य या पशु के रूप में नया जन्म प्राप्त करती है. जो लोग बहुत ज्यादा पाप करते हैं, वे मनुष्य और पशुओं के अतिरिक्त अन्य योनियों में जन्म पाते हैं. अन्य योनियां जैसे पेड़-पौध, पहाड़, तिनके आदि।
क्या है आत्मज्ञान और परमात्मा का स्वरूप ?
यमराज ने नचिकेता को ॐ का प्रतीक ही परमात्मा का स्वरूप बताया। उन्होंने बताया की अविनाशी प्रणव यानि ॐ ही परब्रह्म है. ॐ ही परमात्मा को पाने में अभी आश्रयो में सर्वश्रेष्ठ और अंतिम माध्यम है. सारे वेदो एवं छन्द मंत्रो में ॐ को ही परम रहस्य बताया गया है।
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