चन्द्र और चन्द्र लग्न का महत्व
दक्षिण भारत को छोड़कर पूरे भारत में प्रत्येक जन्मपत्री में दो लग्न बनाये
जाते हैं। एक जन्म लग्न और दूसरा चन्द्र लग्न। जन्म लग्न को देह समझा जाये
तो चन्द्र लग्न मन है। बिना मन के देह का कोई अस्तित्व नहीं होता और बिना
देह के मन का कोई स्थान नहीं है। देह और मन हर प्राणी के लिए आवश्यक है
इसीलिये लग्न और चन्द्र दोनों की स्थिति देखना ज्योतिष शास्त्र में बहुत ही
महत्त्वपूर्ण है। सूर्य लग्न का अपना महत्व है। वह आत्मा की स्थिति को
दर्शाता है। मन और देह दोनों का विनाश हो जाता है परन्तु आत्मा अमर है।
चन्द्र ग्रहों में सबसे छोटा ग्रह है। परन्तु इसकी गति ग्रहों में सबसे
अधिक है। शनि एक राशि को पार करने के लिए ढ़ाई वर्ष लेता है, बृहस्पति लगभग
एक वर्ष, राहू लगभग १४ महीने और चन्द्रमा सवा दो दिन - कितना अंतर है।
चन्द्रमा की तीव्र गति और इसके प्रभावशाली होने के कारण किस समय क्या घटना
होगी, चन्द्र से ही पता चलता है। विंशोत्तरी दशा, योगिनी दशा, अष्टोतरी
दशा आदि यह सभी दशाएं चन्द्र की गति से ही बनती है। चन्द्र जिस नक्षत्र के
स्वामी से ही दशा का आरम्भ होता है। अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले
जातक की दशा केतु से आरम्भ होती है क्योंकि अश्विनी नक्षत्र का स्वामी केतु
है। इस प्रकार जब चन्द्र भरणी नक्षत्र में हो तो व्यक्ति शुक्र दशा से
अपना जीवन आरम्भ करता है क्योंकि भरणी नक्षत्र का स्वामी शुक्र है। अशुभ
और शुभ समय को देखने के लिए दशा, अन्तर्दशा और प्रत्यंतर दशा देखी जाती है।
यह सब चन्द्र से ही निकाली जाती है।
ग्रहों की स्थिति निरंतर हर समय बदलती रहती है। ग्रहों की बदलती स्थिति
का प्रभाव विशेषकर चन्द्र कुंडली से ही देखा जाता है। जैसे शनि चलत में
चन्द्र से तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में हो तो शुभ फल देता है और दुसरे
भावों में हानिकारक होता है। बृहस्पति चलत में चन्द्र लग्न से दूसरे,
पाँचवे, सातवें, नौवें और ग्यारहवें भाव में शुभ फल देता है और दूसरे भावों
में इसका फल शुभ नहीं होता। इसी प्रकार सब ग्रहों का चलत में शुभ या अशुभ
फल देखना के लिए चन्द्र लग्न ही देखा जाता है। कई योग ऐसे होते हैं तो
चन्द्र की स्थिति से बनते हैं और उनका फल बहुत प्रभावित होता है।
चन्द्र से अगर शुभ ग्रह छः, सात और आठ राशि में हो तो यह एक बहुत ही शुभ
स्थिति है। शुभ ग्रह शुक्र, बुध और बृहस्पति माने जाते हैं। यह योग
मनुष्य जीवन सुखी, ऐश्वर्या वस्तुओं से भरपूर, शत्रुओं पर विजयी ,
स्वास्थ्य, लम्बी आयु कई प्रकार से सुखी बनाता है।
जब चन्द्र से कोई भी शुभ ग्रह जैसे शुक्र, बृहस्पति और बुध दसवें भाव में
हो तो व्यक्ति दीर्घायु, धनवान और परिवार सहित हर प्रकार से सुखी होता
है।चन्द्र से कोई भी ग्रह जब दूसरे या बारहवें भाव में न हो तो वह अशुभ
होता है। अगर किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि चन्द्र पर न हो तो वह बहुत ही
अशुभ होता है।
इस प्रकार से चन्द्र की स्थिति से १०८ योग बनते हैं और वह चन्द्र लग्न से ही बहुत ही आसानी के साथ देखे जा सकते हैं।
चन्द्र का प्रभाव पृथ्वी, उस पर रहने वाले प्राणियों और पृथ्वी के दूसरे
पदार्थों पर बहुत ही प्रभावशाली होता है। चन्द्र के कारण ही समुद्र मैं
ज्वारभाटा उत्पन्न होता है। समुद्र पर पूर्णिमा और अमावस्या को २४ घंटे में
एक बार चन्द्र का प्रभाव देखने को मिलता है। किस प्रकार से चन्द्र सागर
के पानी को ऊपर ले जाता है और फिर नीचे ले आता है। तिथि बदलने के साथ-साथ
सागर का उतार चढ़ाव भी बदलता रहता है।
प्रत्येक व्यक्ति में ६० प्रतिशत से अधिक पानी होता है। इससे अंदाज़ा लगाया
जा सकता है चन्द्र के बदलने का व्यक्ति पर कितना प्रभाव पड़ता होगा। चन्द्र
के बदलने के साथ-साथ किसी पागल व्यक्ति की स्थिति को देख कर इस बात का
अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
चन्द्र साँस की नाड़ी और शरीर में खून का कारक है। चन्द्र की अशुभ स्थिति से
व्यक्ति को दमा भी हो सकता है। दमे के लिए वास्तव में वायु की तीनों
राशियाँ मिथुन, तुला और कुम्भ इन पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि, राहु और केतु
का चन्द्र संपर्क, बुध और चन्द्र की स्थिति यह सब देखने के पश्चात ही
निर्णय लिया जा सकता है।
चन्द्र माता का कारक है। चन्द्र और सूर्य दोनों राजयोग के कारक होते हैं।
इनकी स्थिति शुभ होने से अच्छे पद की प्राप्ति होती है। चन्द्र जब धनी
बनाने पर आये तो इसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता।
चन्द्र खाने-पीने के विषय में बहुत प्रभावशाली है। अगर चन्द्र की स्थिति
ख़राब हो जाये तो व्यक्ति कई नशीली वस्तुओं का सेवन करने लगता है। जातक
पारिजात के आठवें अध्याय के १००वे श्लोक में लिखा है चन्द्र उच्च का वृष
राशि का हो तो व व्यक्ति मीठे पदार्थ खाने का इच्छुक होता है। जातक
पारिजात के अध्याय ६, श्लोक ८१ में लिखा है कि चन्द्र खाने-पीने की आदतों
पर प्रभाव डालता है। इसी प्रकार बृहत् पराशर होरा के अध्याय ५७ श्लोक ४८
में लिखा है कि अगर चन्द्र की स्थिति निर्बल हो तो शनि की अंतरदशा में
व्यक्ति को समय से खाना नहीं मिलता।
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