Saturday, May 27, 2017

न्यास का परम उद्देश्य


न्यास का परम उद्देश्य
〰️〰️🌼🌼🌼〰️〰️

"न्यास" का अर्थ "रखना या प्रतिष्ठित करना" है। साधक द्वारा अपने बाह्य तथा अन्तः शरीर में विभिन्न देवताओं की प्रतिष्ठा करके शरीर को देवमय बनाने की क्रिया का नाम न्यास है।न्यास विधि के द्वारा साधक अपने को सामान्य मानवीय भूमिका से ऊपर उठाकर अपने गुरु तथा इष्ट देवता के साथ तादात्म्यावस्था को प्राप्त करने का प्रयास करता है। साधना में "देवो भूत्वा देवानप्येति" का मूलमंत्र काम आता है। तात्पर्य यह है कि यदि गुरु और इष्ट की कृपा प्राप्ति करनी है, तो सामान्य मानवीय प्रकृति से ऊपर उठकर गुरु तथा देवतामय बनना पड़ता है,

"ईश्वरो गुरुरात्मेति मूर्तिभेदविभागिने"
अर्थात स्वयं में गुरु तथा ईश्वर में केवल बाह्यभेद मानकर परमार्थतः अभेद भावना करनी होती है।

न्यास ऋष्यादिन्यास, षडंगन्यास, करन्यास, मातृकान्यास, सृष्टिन्यास, संहारन्यास, आदि कई प्रकार के होते है। ऋष्यादिन्यास में मन्त्र के ऋषि, छन्दस्, देवता, बीज, शक्ति, तथा कीलक नामक छह अंग होते है।इनमे से प्रत्येक के साथ चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग करते हुये क्रमशः नमः, स्वाहा, वषट्, हुं, वौषट् तथा फट् पदों के साथ सिर, मुख, ह्रदय, गुदा, चरण तथा नाभि में न्यास किया जाता है।जैसे , भगवती दुर्गा के महामन्त्र "ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः" के ऋषि नारद, छन्दस् गायत्री, देवता दुर्गा, बीज दुं तथा शक्ति ह्रीं है। इस मन्त्र की साधना में ऋष्यादिन्यास निम्न प्रकार से किये जाने का विधान है--

नारदाय ऋषये नमः (सिर में ),
गायत्री छन्दसे नमः (मुख में ),
दुर्गादेवतायै नमः (ह्रदय में ),
दुं बीजाय नमः (गुह्यांग में ),
ह्रीँ शक्तये नमः (चरणों में ),

अंगन्यास की विधि स्वसम्प्रदायानुसार भिन्न हो सकती है।शाक्त साधको की परम्परा में हृदयन्यास में तर्जनी तथा मध्यमा नामक अँगुलियों से ह्रदय एवं सिर का, बंधी हुई मुठ्ठी वाले अंगूठे से शिखा का, दोनों हथेलियो से सर्वांग का, तर्जनी एवम् अनामिका से नेत्रो ( मध्यमा से भ्रूमध्य में स्थित तीसरे नेत्र ) का स्पर्श करके तथा चोटी के बंधन से दिग्बंध की षडंग क्रिया संपन्न की जाती है।

दीक्षा तथा देव- साधना आदि के अवसरों पर प्रयुक्त किये जाने वाले षोडशांगन्यास, षडध्यन्यास, अजपादिन्यास, कला-केश्वादिन्यास, ग्रहन्यास, सृष्टिन्यास, संहारन्यास आदि की विधि को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। साधक के तन और मन में किये जाने वाले न्यासों का मूल उद्देश्य साधक के तन मन को निर्मल बनाकर उसे देवत्व तक पहुँचाना है।

देव शासनम् Web Developer

No comments:

Post a Comment