आस्था और अंधविश्वास की इस बार की कड़ी में हम आपको ले चलते हैं उज्जैन जिले के चिखली ग्राम में जहाँ ऐसी मान्यता है कि यदि रावण को पूजा नहीं गया तो पूरा गाँव जलकर भस्म हो जाएगा।
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आप इसे आस्था मानें या अंधविश्वास लेकिन यहाँ परम्परा अनुसार प्रत्येक वर्ष चैत्र नवरात्र में दशमी के दिन पूरा गाँव रावण की पूजा में लीन हो जाता है। इस दौरान यहाँ रावण का मेला लगता है और दशमी के दिन राम और रावण युद्ध का भव्य आयोजन होता है। पहले गाँव के प्रमुख द्वार के समक्ष रावण का एक स्थान ही हुआ करता था, जहाँ प्रत्येक वर्ष गोबर से रावण बनाकर उसकी पूजा की जाती थी लेकिन अब यहाँ रावण की एक विशाल मूर्ति है।
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आप इसे आस्था मानें या अंधविश्वास लेकिन यहाँ परम्परा अनुसार प्रत्येक वर्ष चैत्र नवरात्र में दशमी के दिन पूरा गाँव रावण की पूजा में लीन हो जाता है। इस दौरान यहाँ रावण का मेला लगता है और दशमी के दिन राम और रावण युद्ध का भव्य आयोजन होता है। पहले गाँव के प्रमुख द्वार के समक्ष रावण का एक स्थान ही हुआ करता था, जहाँ प्रत्येक वर्ष गोबर से रावण बनाकर उसकी पूजा की जाती थी लेकिन अब यहाँ रावण की एक विशाल मूर्ति है।
यहाँ के सरपंच कैलाशनारायण व्यास का कहना है कि यहाँ रावण की ही पूजा होती है। पूजा करने की परम्परा वर्षों पुरानी है। एक वर्ष किसी कारणवश रावण की पूजा नहीं की गई थी और न ही मेला लगाया गया था तो पूरे गाँव में अकस्मात आग लग गई थी, मुश्किल से सिर्फ एक घर ही बच सका।
जहाँ बुराई के प्रतीक रावण के पुतले को प्रत्येक वर्ष जलाया जाता है, वहीं देखने में आया है कि श्रीलंका के रानागिर इलाके के अलावा भारत में भी रावण की कहीं-कहीं पूजा-अर्चना किए जाने का प्रचलन बढ़ रहा है। रावण के प्रति उक्त गाँव के समर्पण को आप क्या मानते हैं- आस्था या अंधविश्वास हमें जरूर बताएँ।
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