शनि की ज्योतिषीय विवेचना
ज्योतिष शास्त्रों में शनि के विकृ्त रुप की व्याख्या अधिक की
गई है. शास्त्रों में वर्णित शनि के इस रुप को जानने के बाद व्यक्ति का शनि
की महादशा और शनि की साढेसाती से भयभीत होना स्वभाविक है. पर वास्तविक रुप
में ऎसा नहीं है. जिस प्रकार हर सिक्के के दो पहलू होते है. उसी प्रकार
शनि भी अपने समय में व्यक्ति को जीवन के उच्चतम शिखर या निम्नतम स्तर में
बिठा सकते है.
ज्योतिष शास्त्र के अलग- अलग ग्रन्थों में शनि का अलग- अलग वर्णन किया गया है. शनि के विषय में ज्योतिष के प्रसिद्ध ग्रन्थ क्या कहते है. आईये देखे.
कृ्शदीर्घतनु: सौरि: पिंगदृष्टय निलात्मक:
स्थूल दन्तोअलसी पंगु: खररोगकंचो द्विज
अर्थात शनि ग्रह दुर्बल, लम्बा शरीर, पीले नेत्र, वायु प्रकृ्ति, मोटे दांत, आलसी, पंगु, रुखे रोम बालों वाला है. इसके अर्तिरिक्त वृहतपराशर होरा शास्त्र में शनि को ऊसर भूमि का स्वामी, नीरस व कांटे वाले पेडों का कारक कहा गया है. तथा सभी ग्रहों में शनि को वृ्द्ध माना गया है. शिशिर (सर्दी) मौसम के स्वामी शनि है. शनि को तमोगुणी माना गया है.
क्रियास्वपटु: कातराक्ष: कृ्ष्ण: कृ्शदीर्घागो:
वृ्हददन्तो रुक्षातनूरुहो वात्मात्मा कठिनवाग्निन्धो मन्द:
अर्थात शनि का स्वरुप कार्यक्षेत्र में विफल, डराने वाले नेत्र, काला रंग, दुर्बल, लम्बा शरीर, बडे- बडे दांत, रुखा शरीर, रुखे केश, वात प्रकृ्ति, कठोर वचन बोलने वाला तथा निन्दित है.
" फलदीपिका" भी ज्योतिष के प्रसिद्ध ग्रन्थों में से एक है. इस ग्रन्थ ने शनि की व्याख्या कुछ इस प्रकार की है:-
फलदीपिका के अनुसार शनि आयु, मृत्यु, भय, पतितता, दु:ख, अपमान, रोग, गरीबी, नौकर, बदनामी, निन्दित कार्य, अपवित्रता, विपति, स्थिरता, नीच लोगों से प्राप्त सहायता, भैंसे, अलसायापन, कर्ज, लोहा, दासता, कृ्षि के उपकरण, जेल यात्रा व बन्धन आदि का विचार शनि से किया जाता है.
इसी प्रकार अन्य ग्रंन्थों में भी शनि के विषय में कुछ इसी प्रकार का कहा गया है. सभी ग्रन्थों के मिले-जुले वर्णन के अनुसार शनि काफी बलवान प्रकृ्ति के, कठोर, दुष्ट ग्रह है. इस विषय में सभी ग्रन्थ एकमत है कि जब व्यक्ति पर शनि की कृ्पा होती है तो व्यक्ति के पास इतना धन आता है कि वह संभाले नहीं संभलता है. परन्तु जब शनि रुष्ट होते है तो व्यक्ति को एक वक्त का भोजन भी नसीब नहीं होता है.
संक्षेप में कहे तो शनि जब देते है तो छप्पर फाड कर देते है. परन्तु जब वे लेने पर आते है तो व्यक्ति के पास दु:ख के पास कुछ नहीं छोडते है. प्रत्येक व्यक्ति के लिये शनि समान नहीं हो सकते है. शनि की प्रकृ्ति व शनि के प्रभाव से मिलने वाले फल जन्म कुण्डली के ग्रह-योग व महादशा- अन्तर्दशा पर काफी हद तक निर्भर करते है.
ज्योतिष शास्त्र के अलग- अलग ग्रन्थों में शनि का अलग- अलग वर्णन किया गया है. शनि के विषय में ज्योतिष के प्रसिद्ध ग्रन्थ क्या कहते है. आईये देखे.
जैसे वैदिक ज्योतिष के सर्वोच्च महान ग्रन्थ "वृ्हत्पराशर होरा" शास्त्र के अनुसार:-
कृ्शदीर्घतनु: सौरि: पिंगदृष्टय निलात्मक:
स्थूल दन्तोअलसी पंगु: खररोगकंचो द्विज
अर्थात शनि ग्रह दुर्बल, लम्बा शरीर, पीले नेत्र, वायु प्रकृ्ति, मोटे दांत, आलसी, पंगु, रुखे रोम बालों वाला है. इसके अर्तिरिक्त वृहतपराशर होरा शास्त्र में शनि को ऊसर भूमि का स्वामी, नीरस व कांटे वाले पेडों का कारक कहा गया है. तथा सभी ग्रहों में शनि को वृ्द्ध माना गया है. शिशिर (सर्दी) मौसम के स्वामी शनि है. शनि को तमोगुणी माना गया है.
वैदिक ज्योतिष के एक अन्य महान ग्रन्थ "जातक तत्वम' के अनुसार शनि:-
क्रियास्वपटु: कातराक्ष: कृ्ष्ण: कृ्शदीर्घागो:
वृ्हददन्तो रुक्षातनूरुहो वात्मात्मा कठिनवाग्निन्धो मन्द:
अर्थात शनि का स्वरुप कार्यक्षेत्र में विफल, डराने वाले नेत्र, काला रंग, दुर्बल, लम्बा शरीर, बडे- बडे दांत, रुखा शरीर, रुखे केश, वात प्रकृ्ति, कठोर वचन बोलने वाला तथा निन्दित है.
" फलदीपिका" भी ज्योतिष के प्रसिद्ध ग्रन्थों में से एक है. इस ग्रन्थ ने शनि की व्याख्या कुछ इस प्रकार की है:-
फलदीपिका के अनुसार शनि आयु, मृत्यु, भय, पतितता, दु:ख, अपमान, रोग, गरीबी, नौकर, बदनामी, निन्दित कार्य, अपवित्रता, विपति, स्थिरता, नीच लोगों से प्राप्त सहायता, भैंसे, अलसायापन, कर्ज, लोहा, दासता, कृ्षि के उपकरण, जेल यात्रा व बन्धन आदि का विचार शनि से किया जाता है.
इसी प्रकार अन्य ग्रंन्थों में भी शनि के विषय में कुछ इसी प्रकार का कहा गया है. सभी ग्रन्थों के मिले-जुले वर्णन के अनुसार शनि काफी बलवान प्रकृ्ति के, कठोर, दुष्ट ग्रह है. इस विषय में सभी ग्रन्थ एकमत है कि जब व्यक्ति पर शनि की कृ्पा होती है तो व्यक्ति के पास इतना धन आता है कि वह संभाले नहीं संभलता है. परन्तु जब शनि रुष्ट होते है तो व्यक्ति को एक वक्त का भोजन भी नसीब नहीं होता है.
संक्षेप में कहे तो शनि जब देते है तो छप्पर फाड कर देते है. परन्तु जब वे लेने पर आते है तो व्यक्ति के पास दु:ख के पास कुछ नहीं छोडते है. प्रत्येक व्यक्ति के लिये शनि समान नहीं हो सकते है. शनि की प्रकृ्ति व शनि के प्रभाव से मिलने वाले फल जन्म कुण्डली के ग्रह-योग व महादशा- अन्तर्दशा पर काफी हद तक निर्भर करते है.
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