वास्तु और मुख्य द्वार : कुछ टिप्स
गृह के मुख्य द्वार को
गृहमुख माना जाता है। इसका वास्तु शास्त्र में विशेष महत्व है। यह परिवार व
गृहस्वामी की शालीनता, समृद्धि व विद्वत्ता दर्शाता है। इसलिए मुख्य द्वार
को हमेशा बाकी द्वारों की अपेक्षा बड़ा व सुसज्जित रखने की प्रथा रही है।
पौराणिक भारतीय संस्कृति के अनुसार इसे कलश, नारियल व पुष्प, केले के पत्र
या स्वास्तिक आदि से अथवा उनके चित्रों से सुसज्जित करना चाहिए।
मुख्य द्वार चार भुजाओं की चौखट वाला हो। इसे दहलीज भी कहते हैं। इससे निव...ास में गंदगी भी कम आती है तथा नकारात्मक ऊर्जाएं प्रवेश नहीं कर पातीं। प्रातः घर का जो भी व्यक्ति मुख्य द्वार खोले, उसे सर्वप्रथम दहलीज पर जल छिड़कना चाहिए, ताकि रात में वहां एकत्रित दूषित ऊर्जाएं घुलकर बह जाएं और गृह में प्रवेश न कर पाएं।
गृहिणी को चाहिए कि वह प्रातः सर्वप्रथम घर की साफ-सफाई करे या कराए। तत्पश्चात स्वयं नहा-धोकर मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर एकदम सामने स्थल पर सामथ्र्य के अनुसार रंगोली बनाए। यह भी नकारात्मक ऊर्जाओं को रोकती है।
मुख्य प्रवेश द्वार के ऊपर केसरिया रंग से 9ग9 परिमाण का स्वास्तिक बनाकर लगाएं। मुख्य प्रवेश द्वार को हरे व पीले रंग से रंगना वास्तुसम्मत होता है।
खाना बनाना शुरू करने से पहले पाकशाला का साफ होना अति आवश्यक है। रोसोईये को चाहिए कि मंत्र पाठ से ईश्वर को याद करे और कहे कि मेरे हाथ से बना खाना स्वादिष्ट तथा सभी के लिए स्वास्थ्यवर्द्धक हो। पहली चपाती गाय के, दूसरी पक्षियों के तथा तीसरी कुत्ते के निमित्त बनाए। तदुपरांत परविार का भोजन आदि बनाए।
विशेष वास्तु उपचार :
निवास गृह या कार्यालय में शुद्ध ऊर्जा के संचार हेतु प्रातः व सायं
शंख-ध्वनि करें। गुग्गुल युक्त धूप व अगरवत्ती प्रज्वलित करें तथा ¬ का
उच्चारण करते हुए समस्त गृह में धूम्र को घुमाएं। प्रातः काल सूर्य को
अघ्र्य देकर सूर्य नमस्कार अवश्य करें। यदि परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य
अनुकूल रहेगा, तो गृह का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। ध्यान रखें, आईने व
झरोखों के शीशों पर धूल नहीं रहे। उन्हें प्रतिदिन साफ रखें।
गृह की उत्तर दिशा में विभूषक फव्वारा या मछली कुंड रखें। इससे परिवार में समृद्धि की वृद्धि होती है।
No comments:
Post a Comment