Sunday, May 3, 2015

विशिष्ट ग्रह योग


विशिष्ट ग्रह योग

किसी भी ग्रह की या ग्रहों की विशेष प्रकार की स्थिति को ज्योतिष में योग कहा जाता है। योग का शाब्दिक अर्थ जोड़ या मिलना होता है। इन योगों में भी ग्रह की स्थान विशेषगत राशि से युति या योग होता है। योग में निर्दिष्ट ग्रह उस स्थिति में हो तो योग का फल मिलता है यदि निर्दिष्ट ग्रह ग्रहान्तर से युक्त है तो योग नहीं बनता। हाँ, उसके साथ मित्र या अनुकूल शुभ ग्रह रहता  उतना बाधित नहीं होता। 
सारे योगों - जिनमे यवनाचार्यों एवं विदेशियों द्वारा बताये गए योगों की संख्या तो बहुत बड़ी है किन्तु यहाँ हम जिन योगों की चर्चा करेंगे वे अत्यंत प्रसिद्ध है तथा ज्योतिष में रुचि रखने वालों को उनका ज्ञान होना ही चाहिए।

यवनादिक पूर्वाचार्यों ने नाभस नाम के १८०० योग विस्तारपूर्वक वर्णन किये हैं उसमें से जो मुख्य ३२ योग हैं जिनमें सचराचर जगत के लोगों का प्रसव होता है वे ३२ योग नौका, कुट , छत्र , चाप, अर्धचन्द्र, वज्र, यव, कमल, वापी, शकट, पक्षि, गदा, श्रृंगाटक, हल, चक्र, समुद्र, यूप, शर, शक्ति, दण्ड , माला, सर्प, रज्जू , मूसल, नल, गोल, युग, शूल, केदार, पाश, दामिनी, वीणा हैं।
इन योगों के चार भेद कर लेते हैं जिनकी संज्ञा - आकृतिआश्रय, दल एवं संख्या के नाम से की जाती है। आकृति वर्ग में आने वाले योग ठीक उसी पद्धति पर तारामंडल का मेष, वृष, मिथुन आदि नामों से वर्गीकरण किया गया है। नामों की सार्थकता देखते हुए इनसे आगे के योग भी अपना स्वतंत्र अर्थ देते हैं किन्तु उनकी गुणात्मकता में परिवर्तन हो जाता है।
आकृति वर्ग  में आने वाले योग
नौका, कूट, छत्र, चाप, अर्धचन्द्र, वज्र, यव, कमल, वापी, शकट, पक्षि,  गदा, हल, श्रृंगाटक, चक्र, समुद्र, यूप, शर, शक्ति, दण्ड  - बीस आकृति नाम की संज्ञा के हैं। इन योगों में जन्म लेने वाले पुरुष विशेष कर सुखी, भाग्यवान्, नृप वल्लभ धनवान आनन्द भोगने वाले होते हैं। ये योग जिस व्यक्ति की कुंडली में बनते हैं, वह आनंदी प्रकृति का, सांसारिक सुख व ऐश्वर्य का उपभोक्ता, राजपूजित व प्रसिद्ध व्यक्ति होता है।

दल वर्ग में आने वाले योग

माला और सर्प दोनों योग फल संज्ञक हैं। इन योगों में जन्म लेने वाले व्यक्ति जीवन की धूप-छाँव में कभी सुख तो कभी दुःख का अनुभव करते हैं, कभी संगति, संबंध या अन्य आधारों के कारण दूसरों के भाग्य संपन्नता का उनके दुःखों  का उपभोग करते हैं कभी स्वार्जित सुखों और विषमताओं का अुनभव करते हैं।
आश्रय वर्ग में आने वाले योग 
रज्जू, मूसल और नल नाम के तीन योगों में जन्म लेने वाले व्यक्ति भाग्यवान्, प्रसिद्ध, सुखी, धनिक, उदार तथा राज एवं समाज में सम्मानित होता है।
संख्या वर्ग में आने वाले योग 

गोल, युग, शूल, केदार पाश, दामिनी, वीणा नाम के सात योग व्यक्ति को परोपजीवी बनाते हैं। इन योगों में जन्म लेने वाला व्यक्ति अपने स्वार्जित या स्वकृत पुण्यों का फल स्वतंत्र रूप से नहीं भोगता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि ऐसे व्यक्ति यथासंभव सुख-सुविधाओं का उपभोग करते हैं किन्तु दूसरे के यहाँ और पराश्रित होकर ही (पर पुरुषों की सेवाचाकरी करने वाले होते हैं) जैसे कोई घोड़ा किसी करोड़पति के अस्तबल में रहकर सब सुखों को प्राप्त करता है।
आगे इसी वर्गीकरण के आधार पर ही इन योगों की विस्तार से चर्चा की जाएगी। ध्यान रखने योग्य बात है कि इन योगों में राहु केतु नहीं गिने जाते हैं। योग कर्त्ता ग्रह अन्य ग्रह से युत हो जावे तो योग का फल नहीं होता है।
  1. नौका योग - लग्न को आदि ले सात स्थान १, २, ३, ४, ५, ६, ७ में क्रम से सर्व ग्रह गये हों तो नौका नाम का योग होता है। यह योग जिसके जन्म समय में होता है वह जल के संबंध से जल मार्ग के संबंध से उपजीवीका करने वाला (जहाज नाव आदि के द्वारा जल मार्ग से व्यापार करने वाला) तथा सोडा वाटर, दवाई, मद्य आदि पानी के समान तरल पदार्थों का विक्रेता, ऐश्वर्यवान्, उद्योगी, हँसमुख, मान प्रतिष्ठा वाला बलवान, कृपण और लोभी होता है। 
  2. कूट योग - सप्तम स्थान से सात स्थान में अनुक्रम से ७,८,९,१०,११, १२,१ सर्वग्रह गये हों तो कूट योग होता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में यह योग होता है वह क्रूर, झूठा, पाखण्डी, चालाक, जंगली और पहाड़ों की ख़ाक छानने वाला, कारावास भोगने वाला होता है। कोई आश्चर्य नहीं यदि यह चोर या डाकू हो।
  3.  छत्र योग -  चौथे स्थान से दसवें स्थान तक के सात स्थानों में ही सारे ग्रह रहें तो छत्र योग होता है। इस योग वाला व्यक्ति दीर्घायु होता है होता है। बचपन और वृद्धावस्था परम उत्कृष्ट और सुखकर रहती है। वैभव सम्पन्न, उदार हृदय, बलिष्ठ शरीर, दयावान, राज्य शासन से लाभ प्राप्त करने वाला होता है। 
  4. चाप योग - दशम स्थान से चौथे स्थान तक के (१०, ११, १२, १, २, ३, ४) सात स्थानों में सारे ग्रह स्थित हों तो चाप योग बनता है। चाप योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति लूटेरे, ठग  धूर्त किस्म के होते हैं। क्रूरता, असत्य और निर्धनता उनके स्वभाव में रहती है। समाज में उनका कोई महत्व नहीं होता, इसलिए एकान्त स्थानों में अपने जैसे अपराधी वृत्ति के लोगों के बीच रहते है। 
  5. अर्धचन्द्र योग - केंद्र स्थानों को छोड़कर शेष स्थानों (२,३,५,६,८,९,११,१२) में से पाँच स्थानों में ही क्रमशः सारे ग्रह जायें तो अर्धचन्द्र नाम का योग होता है।   यह योग ८ प्रकार का होता है।  दूसरे भाव से आठवें भाव तक सर्व ग्रह जायें तो पहला,  ऐसे ही तीसरे भाव से नौवें भाव तक २, पांचवें भाव से ग्यारहवें भाव तक ३, छठे भाव से बारहवें भाव तक  ४, आठवें भाव से दूसरे भाव तक ५, नववें भाव से तीसरे भाव तक ६, ग्यारहवें भाव से पाँचवें स्थान तक ७, और बारहवें भाव से छठे भाव तक सर्व ग्रह जायें तो आठवें प्रकार का योग होता है। यह योग जिनके जन्म समय में होता है वह सुन्दर, बलिष्ठ, भाग्यवान्, राज्यपक्ष के विश्वस्त, सुखी तथा धनी होते हैं। 
जारी है ................
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