Sunday, May 3, 2015

कुंडली चक्र


कुंडली चक्र 

कुंडली चक्र

 

  • कुंडली के प्रथम भाव को लग्न कहा जाता है और उसके स्वामी को लग्नेश या लग्नाधिपति कहते हैं।
  • १, ४, ७, १० भावों को केंद्र स्थान कहते हैं।
  • २, ५, ८, ११, १२ को पणफर ग्रह कहते हैं। 
  • ३,  ६, ९ को आपोक्लिम ग्रह कहते हैं। 
  • ५, ९ को त्रिकोण स्थान कहते हैं।
  • ९वें   को त्रि-त्रिकोण स्थान कहते हैं। 
  • २, ८ को मारक स्थान कहते हैं। 
  • ३, ६, १०, ११ को उपचय स्थान कहते हैं। 
  • ६, ८, १२ को त्रिक स्थान कहते हैं। 
  • ३, ६, ११ को त्रिषडाय स्थान कहते हैं। 
  • दूसरे भाव को द्रव्य स्थान और उसके स्वामी को द्रव्येश कहते हैं। 
  • तीसरे भाव को पराक्रम स्थान और उसके स्वामी को पराक्रमेश कहते हैं। 
  • चौथे स्थान को सुख स्थान या मातृ स्थान और उसके स्वामी को सुखेश कहा गया है। 
  • पाँचवे स्थान को विद्या स्थान, संतान स्थान या सुत स्थान भी कहते हैं और उसके स्वामी को पंचमेश या सुतेश कहा गया है। 
  • छठे स्थान को कष्ट स्थान और उसके स्वामी को कष्टेश कहते हैं। 
  • सातवें भाव को जाया स्थान और उसके स्वामी को सप्तमेश अथवा जायेश कहते हैं। 
  • आठवें भाव को मृत्यु स्थान और  मारकेश या मृतेश भी कहा गया है। 
  • नौवें भाव को भाग्य स्थान और उसके स्वामी को भाग्येश के नाम से पुकारा जाता है। 
  • दसवें भाव को कर्म स्थान या राज्य स्थान कहा जाता है तथा उसके स्वामी को कर्मेश या राज्येश कहा जाता है। 
  • ग्यारहवें भाव को आय स्थान और उसके स्वामी को आयेश कहते हैं। 
  • बारहवें भाव को व्यय स्थान और उसके स्वामी को व्ययेश कहते हैं।
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